अरिकामेडु :-- जैन संप्रदाय का तीर्थ और दक्षिण भारत का व्यापारिक केंद्र। फ्रांसीसी इसे विक्रमपट्टन कहते थे और पेरिप्लस एवं टॉलमी ने इसे पोदुके कहा है। 1937, 1944 और बाद में होने वाली खुदाई में अरिकामेडु से प्रथम शताब्दी में रोम से संपर्क होने के प्रमाण मिले है। 1945 ई ० में यहां एक विशाल रोमन बस्ती मिली है। कोरोमंडल तट पर अवस्थित यह प्रथम शताब्दी में प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।
अमरावती :-- गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर अवस्थित यह स्थल स्तूप और नक्काशी के लिए जाना जाता है। अमरावती स्तूप का आधार 162 फुट और ऊंचाई 100 फुट है। अमरावती को धान्य कटक के नाम से भी जाना जाता था। सातवाहन काल में अमरावती का काफी विकास हुआ। अमरावती स्तूप का निर्माण सातवाहन शासकों ने ही करवाया।
अजंता :-- जलगांव( महाराष्ट्र) से 60 किमी दूर अवस्थित यह स्थान कला के लिए विश्व विख्यात है। इस स्थान की खोज अचानक ही जेम्स अलेक्जेंडर द्वारा 1819 ई ० में हुई। अजंता में कुल 29 गुफाएं हैं जो बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर डेढ़ किलोमीटर के अर्द्ध वर्गाकार क्षेत्र में फैली है। यह गुफाएं शुंग काल से लेकर सातवीं शताब्दी के दौरान तक बनी है। अजंता की गुफाएं चित्रों से युक्त है। गुप्त काल के दौरान चैत्य और विहार दोनों ही निर्मित किए गए। गुफा नंबर -- 16 और 17 विहार है, जबकि गुफा नंबर-- 19 चैत्य है। गुफाओं में फ्रेस्को पेंटिंग की गई है। गुफा नंबर -- 16 में ‘ मरणासन्न राजकुमारी’ का चित्र उल्लेखनीय है।
अंधक :-- महाकाव्य कालीन यह स्थल मथुरा के समीप यमुना के तट पर स्थित था। महाभारत के अनुसार अंधक वंश में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। शांति पर्व में अंधेको और वृष्णियों को एक दूसरे का संबंधी बताया गया है। ऐसा कहा जाता है की अंधक नामक असुर के नाम पर इस स्थान का नामकरण हुआ।
अपरांतक :-- कोंकण क्षेत्र में स्थित उपरांतक सातवाहन काल में विकसित हुआ। इसे अपरांत या अपरान्तिक भी कहां जाता है। गौतमीपुत्र सतकर्णी ने अपरांत को विजित किया था।
अयोध्या:-- महाकाव्य कालीन नगर वर्तमान में फैजाबाद जिले में सरयू नदी के किनारे अवस्थित है। समुद्रगुप्त के ताम्रपत्र अभिलेख से ज्ञात होता है की यहां गुप्तों का एक जयस्कंधावर था। त्रेता युग ( रामायण काल) में कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या ही थी। जैन स्रोतों में अयोध्या की माप 12 योजना और 6 योजना बताई गई है। छठी शताब्दी ई ० पू ० में कोशल की राजधानी अयोध्या थी। महाभारत में अयोध्या को ‘ पुण्य लक्षणा’ कहा गया है। अयोध्या के अन्य नाम है -- विनीता, साकेत, इक्ष्वाकुभूमि आदि।
अतरंजी खेड़ा :-- उत्तर प्रदेश के एटा जिले में काली नदी के तट पर अवस्थित अति प्राचीन नगर है। उत्तर वैदिक कालीन अवशेष यहां से प्राप्त हुए हैं तथा शुंग और कुषाण कालीन पुरातात्विक सामग्री मिले हैं।
अनेगुंडी :-- मैसूर के रायचूर क्षेत्र में तुंग भद्रा नदी के तट पर अवस्थित। व्हेनसांग ने अनेगुंडी को कोंगकीनया पुत्र कहा है। ऐसा कहा जाता है की रामायण कालीन वानरों की राजधानी किष्किंधा इसी स्थान पर स्थित थी। मध्यकाल में विजयनगर शासकों ने अनेक भवन यहां बनाए।
अरिष्टपुर :-- पाणिनि ने अपने एक सूत्र में अरिष्टपुर का उल्लेख किया है। इसे अरिष्ट्ठपुर के नाम से भी जाना जाता था। शिवि राज्य को पंजाब के शोरकोट से समीकृत किया जा सकता है।
अवंति :-- छठी शताब्दी ई ० पू ० के 16 महाजनपदों में से एक। इसकी पहचान मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन से की जाती है। महाभारत काल में भी अवंति अस्तित्व में थी। सातवीं सदी के बाद इसे मालव कहा जाने लगा। बुद्ध के काल में चण्ड प्रद्योत यहां का एक शासक था।
आबू :-- राजस्थान के सिरोही जिले में आबू रोड से 28 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पाँच सुविख्यात जैन मंदिर है जिनमें विमलशाही मंदिर और तेजपाल मंदिर प्रमुख है। प्लिनी ने इसे ‘ माउंट केपिटलिया ’ कहा है , इसका दूसरा नाम अबुर्द भी है। ऐसा माना जाता है की आबू पर्वत पर वशिष्ट के यज्ञ कुंड से परमार, प्रतिहार, चौहान और सोलंकी राजपूत वंशो का उदय हुआ।
अनुराधापुर :-- चौथी सदी ई ० पू ० में अनुराधापुर की स्थापना पांडुकाभ्य ने की और अपनी राजधानी बनाया। 15 शताब्दियों तक अनुराधापुर श्रीलंका का प्रमुख शहर रहा। पांडुकाभिषेक ने इस नगर को झीलों, मंदिरों, भवनों आदी से सुशोभित किया। कभी धार्मिक केंद्र रहा अनुराधापुर 13वीं सदी में जंगल में बदल गया।
इनामगांव ;-- महाराष्ट्र के पूना जिले में स्थिति इनामगांव ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। यहां से मिट्टी के बड़े घरों के अवशेष मिले हैं। इनामगांव से 1300 -1000 ई ० पू ० का 5 कमरों वाला घर मिला है। जिसके चार कमरे आयताकार और एक गोलाकार है। यह बस्ती एक मोटी दीवार से घिरी हुई थी। एक मातृदेवी की प्रतिमा मिली है जो पश्चिम एशिया से प्राप्त प्रतिमा की भाँति है।
इंद्रप्रस्थ :-- यह स्थल पांडवों की राजधानी बनने से पूर्व खांडवप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। दिल्ली में यमुना तट से 4 किमी दूर दक्षिण में अवस्थित है। महाभारत में इसे वृहस्थल भी कहा गया है। ऐसा कहा जाता है की इंद्रप्रस्थ में पांडवों का ऐसा महल था जिसमें जल थल और थल जल की भांति प्रतीत होता था।
उदयगिरि -- खंडगिरि :-- उड़ीसा में चिल्का झील के उत्तर में उदयगिरि की पहाड़ी अवस्थित है। उदयगिरि में 44 गुफाएं हैं जिनमें हाथीगुम्फा ,जय विजयगुम्फा, बाघगुम्फा और राणीगुम्फा प्रमुख है। हाथीगुम्फा से खारवेल की विजयों और कलिंग के इतिहास की जानकारी मिलती है।
उत्तरमरुर :-- दक्षिण भारत में स्थित ब्राह्मणों का एक गांव। यह स्थान प्रान्तक प्रथम के द्वारा लिखित एक अभिलेख के लिए जाना जाता है। इस अभिलेख में स्थानीय स्वशासन और ग्राम सभाओं की संरचना, कार्य विधि और अधिकार क्षेत्र का उल्लेख है।
उरैयुर :-- दक्षिण भारत में तिरुचिरापल्ली के समीप स्थित चोल वंश की एक राजधानी। चालुक्य शासक विक्रमादित्य प्रथम ने कावेरी के किनारे स्थित उरैयुर पर अधिकार कर लिया था। यह दक्षिण भारत के व्यापारिक केंद्र में विख्यात था।
उरुविल :-- गया के समीप प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल। यहाँ गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या किया। यहां पर गौतम बुद्ध को कौंडिन्य आदि पाँच साधक मिले, जिन्होंने गौतम बुद्ध को तब करने के लिए प्रेरित किया था।
ऐहोल :-- कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित है। पुलकेशिन द्वितीय का यहां एक अभिलेख है जिसके रचयिता रविकीर्ती थे। किस अभिलेख में पुलकेशिन द्वितीय की विजयो और हर्षवर्द्धन की नर्मदा के तट पर पराजय का उल्लेख है।
एलीफेंटा :-- एलिफेंटा की गुफाएं मुंबई के समीप एक पहाड़ी पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम धारापुरी था। इस स्थान का नामकरण पुर्तगालियों ने यहां पत्थर के बने हाथी के कारण किया था। यहां पर हिंदू देवी देवताओं की 9 बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं जिनमें शिव की ‘ त्रिमूर्ति’ प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षक है। एलीफेंटा भारतीय कला का अद्भुत नमूना प्रस्तुत करती है।
एलोरा:-- अजंता से 80 किमी दूर महाराष्ट्र प्रांत में स्थित है। पहाड़ को काटकर बनाया गया सुंदर मंदिर है। एलोरा के मंदिर आठवीं सदी में निर्मित है। एलोरा के सभी मंदिर अंदर तथा बाहर दोनों ही तरफ चित्रित है। एलोरा के चित्रो में अजंता का सौंदर्य नहीं मिलता है।
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