भारत के पारंपरिक नाट्य शैलियां - PRAKASH GK
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भारत के पारंपरिक नाट्य शैलियां




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कृष्णाट्टम :-  इस  लोकनाट्य  का संबंध  केरल राज्य से है।  इसका अस्तित्व 17 वीं  शताब्दी के मध्य कालीकट के महाराज मनवेदा के शासन  के समय आया।  यह लोकनाट्य 8 नाटको  का वृत है।  जो क्रमशः 8 दिन प्रस्तुत किया जाता है।  वृतांत  भगवान  कृष्ण की विषय वस्तु पर आधारित है-श्री कृष्ण जन्म , बाल्यकाल तथा  बुराई पर अच्छाई के विजय को चित्रित करते हुए  प्रस्तुत किया जाता है।
कुटियाट्टम :-  यह केरल का सर्वाधिक प्राचीन पारंपरिक लोक नाट्य रूप है। यह संस्कृत  नाटकों की  परंपरा पर आधारित है।  हस्तमुद्राओं तथा आंखों के संचालन पर बल देने के कारण यह विशिष्ट बन जाता है।  इस नाट्यकला  को यूनेस्को  द्वारा अधिकृत रूप से मौखिक एवं अदृश्य मानव विरासत का उत्कृष्ट स्वरूप के रूप में स्वीकार किया गया है।  इस  नाट्य  कला के प्रमुख कलाकार है- गुरु मणि  माधव  चकयार,  माठी दामोदर  चकयार , पेनकुलम   रमन चकयार आदि।
जात्रा:-  जात्रा  मूल रूप से बंगाल में विकसित हुआ है।  देवपूजा  के निमित  आयोजित  मेलो, अनुष्ठानों आदी से  जुडे  नाट्यगीतो को कहा जाता है। श्रीचैतन्य के प्रभाव से कृष्ण -जागा बहुत लोकप्रिय हुआ। बाद में इसमें लौकिक प्रेम प्रसंग भी जोड़ा गया।
तमाशा :- यह महाराष्ट्र का  पारंपरिक नाट्य  है।  इसके  पूर्ववर्ती  गोंधल जागरण एवं कीर्तन है।  इस लोकनाट्य  में नृत्य  क्रिया की प्रमुख प्रतिपादिका  स्त्री कलाकार  होती हैं। वह ‘मुरकी’  नाम से जानी जाती है। कांताबाई सतरकर तमाशा की प्रसिद्ध कलाकार है।
तेरुक्कुत्तु :-  यह लोक नृत्य  तमिलनाडु  में अत्यंत लोकप्रिय है। तेरुक्कुत्तु का सामान्य शाब्दिक अर्थ है- सड़क  पर किया जाने वाला नाट्य।  इस नाट्यकला का प्रदर्शन  मुख्यत: मारियम्मन और द्रोपदी अम्मा के वार्षिक मंदिर के उत्सव के समय किया जाता है।
दशावतार :- यह कोंकण व गोवा क्षेत्र  का अत्यंत  विकसित नाट्य  रूप है। प्रस्तुतकर्ता पालन व सृजन के देवता भगवान विष्णु के दस अवतारों को प्रस्तुत करता है।
भाओना :- यह असम के अंकिआ  नाट्य की  प्रस्तुति है।  इस शैली में  असम, बंगाल, उड़ीसा, वृन्दावन-मथुरा आदि का सांस्कृतिक झलक है। इसका सूत्रधार दो भाषाओ में अपने को प्रकट करता है- पहले संस्कृत बाद में ब्रजबोली अथवा असमिया में। इसे श्रीमन्त शंकर ने प्रारम्भ किया था।
भवाई :- यह गुजरात और राजस्थान की पारम्परिक नाट्यशैली है। इसमें भक्ति और रूमानी का अदभूत  मेल देखने को मिलता है।
भांड-पाथर :- कश्मीर का पारम्परिक नृत्य। इस नाट्यकला में व्यंग्य मजाक और नक़ल उतारने हेतु इसमें हंसने और हंसाने को प्रथमिकता दी जाती है।
माच :- यह मध्य प्रदेश का पारम्परिक नाट्य है। ‘माच’ शब्द मंच और खेल दोनों अर्थो में इस्तेमाल किया जाता है। माच को प्रारम्भ करने का श्रेय गोपालजी गुरु को जाता है।
मुडियेटटु:-केरल के पारम्परिक लोकनाट्य मुडियेटटु का उत्सव वृश्चिकम(नवम्बर-दिसम्बर ) मास में मनाया जाता है। यह प्रायः देवी के सम्मान में केरल के केवल काली मंदिरो में मनाया जाता है।
नौटंकी :- यह उत्तर प्रदेश से सम्बन्धित है। इसकी कानपुर,लखनऊ,तथा हाथरस शैलियां प्रसिद्ध है। कानपुर की गुलाब बाई ने इसेमें जान डाल  दी उन्होंने नौटंकी के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए।
यक्षगान :-यह मिथक कथाओ तथा पुराणों पर आधारित केरल का पारम्परिक नाट्य रूप है। मुख्य कथानायक महाभारत से लिए गए है।
रासलीला :- यह नाट्य कृष्ण की लीलाओ का अभिनय है। ऐसी मान्यता है की रासलीला संबंधी नाटक सर्वप्रथम नन्ददास द्वारा रचित किया गया।
स्वांग :- यह पहले संगीत का विधान था परन्तु बाद में गद्ध का भी समावेश हुआ। स्वांग की दो शैलीया है - रोहतक शैली में हरियाणवी भाषा तथा हाथरसी शैली में ब्रजभाषा की प्रधानता है।  

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