21 मई 1498 ई० को वास्को डि गामा के कालीकट के तट पर आगमन के साथ ही भारत में तीव्र गति से पुर्तगालीयों का आना जाना शुरू हो गया और उनकी व्यापारिक गतिविधियां बढ़ गयी। पुर्तगालियों का अनुसरण अन्य यूरोपीय देशो ने भी किया और वे भारत के साथ व्यापार करने लगे इन सभी यूरोपीय देशो के साथ व्यापार करने लगे। इन सभी यूरोपीय देशो के व्यापारियों ने भारत में स्थानों पर अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित कर ली।
पुर्तगाली :- पंद्रहवी सदी से पूर्व पश्चिमी देशों के साथ भारतीय सामुद्रिक व्यापार का संचालन अरब व्यापारी करते थे। लेकिन पंद्रहवी सदी में अपनी नौसेनिक शक्ति के बल पर पुर्तगालियो ने सामुद्रिक व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। 1497 ई० में वास्को डि गामा भारत के लिए सीधे मार्ग खोज में लिस्बन से चला और ' केप ऑफ़ द गुड़ होप ' होता हुआ 1498 ई० में कालीकट के तट पर पहुँचा जहाँ के जेमोरिन शासक ने इनका मित्रवत स्वागत किया।
वास्को डि गामा की भारत यात्रा से अरब व्यापारियों में क्रोध व्याप्त था। अतः मालाबार तट पर अरब और मोपला व्यापारियों ने वास्को डि गामा का विरोध किया। वास्को डि गामा जेमोरिन के सशस्त्र सैनिक की सुरक्षा व्यवस्था के कारण ही सुरक्षित रह पाया।
अगला पुर्तगालीअभियान 1500 ई० में अल्वारेज अल्वारेज कैब्रेल के नेतृत्व में कालीकट पहुंचा। कैब्रल ने एक अरबी जहाज को पकड़ कर जेमोरिन को उपहार स्वरूप भेंट किया। इसके परिणाम स्वरुप अरबों ने पुर्तगालियों की बस्तियों पर धावा बोल दिया और इनके निवासियों को मौत के घाट उतार दिया। इस पर कैब्रल आग बबूला हो गया और उसने गोलाबारी कर अरबों के मकानों में आग लगा दी। इसके पश्चात कैब्रल ने कोचीन और केन्नानोर के शासकों से मित्रता स्थापित कर ली। 1501 ई० में वास्को डी गामा पुनः भारत आया और उसने जमोरिन से मुसलमानों के निर्वासन की मांग रखी और कोचीन एवं केन्नानोर को सशक्त बनाने के लिए सैन्य दल स्थापित किए।
वास्को डी गामा के वापस जाने के बाद अरब व्यापारियों ने जमोरिन शासक पर आक्रमण कर दिया। 1503 ई ० में लोपो सोअरेस के नेतृत्व में पुर्तगाली अभियान दल भारत पहुंचा। उसने उन सभी बंदरगाहों को नष्ट कर दिया जो अरबों के प्रभाव में थे। अब पुर्तगाली सरकार को एहसास हो गया की वार्षिक अभियान भेजने और कहीं - कहीं फैक्ट्रियां स्थापित करने भर से पूर्व के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित नहीं किया जा सकता। अतः पुर्तगाली सरकार ने 1505 ई० में नई नीति अपनाते हुए फ्रांसिस्को डि अल्मीडा को 3 वर्ष के लिए गवर्नर नियुक्त किया। उसने 1505 में अंजदीव के किले का निर्माण करवाया। अलमीडा की आक्रमक नीतियों के कारण मिस्र, तुर्की, और गुजरात एक हो गए और चोल के समीप लड़े गए नौसैनिक युद्ध में मुस्लिम बेड़े ने पुर्तगाली बेड़े को हरा दिया। अल्मीडा का पत्र इस लड़ाई में मारा गया। अगले ही वर्ष 1509 ई० में अल्मीडा ने दीव के समीप संयुक्त मुस्लिम बेड़े को हरा।
अल्मीडा के पश्चात अल्बुकर्क ने पुर्तगाल की कमान संभाली। उसने गोवा, मलक्का, अदन, और हार्मुज पर विजय के प्रयास किए। 1510 ई० में अल्बुकर्क ने बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से गोवा जीत लिया। गोवा पर अधिकार होने से दक्षिण- पश्चिम समुद्री तट पर पुर्तगालियों का नियंत्रण हो गया। अल्बुकर्क ने पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया और विजय नगर साम्राज्य से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए। अल्बुकर्क के उत्तराधिकारी बुनो द कुन्हा ( 1529- 38) ने मद्रास के निकट सेंट धाम और हुगली में पुर्तगाली बस्तियां स्थापित की और दीव पर अधिकार कर लिया।
किलेबंद पुर्तगाली फैक्ट्रियां दक्षिण में क्विलो से कोचीन तक और उत्तर में दमन से दीव तक फैली हुई थी। 1540 ई० के उपरांत भारत में पुर्तगाली प्रशासन पर इसाई पादरियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। उन्होंने भारत में भयंकर असहिषुणता पूर्ण धर्मांधता का परिचय दिया।
1611 ईसवी में अंग्रेजों ने मिडेलटन के नेतृत्व में मुंबई तट के निकट पुर्तगाली जहाजी बेड़े को परास्त किया और 1615 ईसवी सवाल्ली में पुर्तगालियों को पुनः परास्त किया। ऐसा नहीं है कि पुर्तगाली सिर्फ यूरोपीय शक्तियों के द्वारा ही प्राप्त किए गए हो। 1632 ईसवी में शाहजहां ने भी हुगली में पुर्तगाली बस्ती को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और 1000 से अधिक पुर्तगाली निवासियों को बंदी बना लिया।
पुर्तगालियों ने भारत में तंबाकू की खेती का प्रचलन किया और भारत में जहाज के निर्माण को बुरी तरह विनिष्ट कर दिया प्रथम मुद्रण मशीन की स्थापना का श्रेय पुर्तगालियों को जाता है।
डच :-- हयुंगे वान लिनसातन पहला डच यात्री था, जो 1583 ई ० में भारत आया। वह 1589 ई ० तक भारत में रहा। 1596 ईस्वी में कार्नेलियन हाउतमैन के नेतृत्व में पहला डच अभियान दल भारत आया। 1602 ई० में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई। इस कंपनी को हॉलेंड सरकार द्वारा 21 वर्षों के लिए भारत और पूर्वी जगत के साथ व्यापार करने और आक्रमण करने एवं विजय करने के संबंध में व्यापक अधिकार प्रदान किए गए। डचों ने शीघ्र ही भारत के मसाला व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया।
डचो की पुलिकट में स्थित गेल्ड्रिया की बस्ती ही किले बंद थी। 1605 ई ० में डचों की पहली स्थाई फैक्ट्री की स्थापना मुसलीपट्टम में की गई और दूसरी फैक्ट्री को पेत्तापोली मैं स्थापित किया गया। इसके बाद शीघ्र ही डचों ने देवपत्तनम में एक नई फैक्ट्री की स्थापना की और जिंजी के कृष्णप्पा नायक की अनुमति से किले का पुनः निर्माण करवाया। 1610 ई० पुलिकट में एक फैक्टरी की स्थापना की। पुलिकट में जिस किले का निर्माण किया गया उसका नाम फोर्ट गेल्ड्रिया रखा गया। 17वीं सभी में गेल्ड्रिया पर गोलकुंडा का अधिकार हो गया।
डचो द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुएं थी -- वस्त्र, नील, चावल, हीरे, बहुमूल्य पत्थर, अफीम और गुलाम, जबकि उनके द्वारा कोरोमंडल में आयात की जाने वाली वस्तुएं थी --- द्वीप समूह से आयातित चंदन की लकड़ी और काली मिर्च, जापान से आयातित तांबा और चीन से रेशम और रेशमी वस्त्र।
1617 इसवी मे कोरोमंडल डच व्यापार निदेशालय को सरकार का दर्जा प्राप्त हो गया। 1659 ई० में नेगापतम को पुर्तगालियों से अधिग्रहित करने के बाद डच मुख्यालय बना दिया गया।1616 ई० मैं गुजरात के मुगल सूबेदार ने डचों को अस्थाई फैक्ट्री के निर्माण की अनुमति दे दी। बाद में भड़ौच, मुंबई, अहमदाबाद, आगरा, और बुरहानपुर में भी डच फैक्ट्रियों की स्थापना हो गई।
बंगाल में पीपली में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना की गई, जो शीघ्र ही बालासोर स्थांतरित हो गई। बाद में चिंसुरा में गुस्तावुस किले का निर्माण हुआ और कासिम बाजार एवं पटना में भी डच स्थापित हो गए।
ब्रिटिश :-- महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा अनुमोदित चार्टर द्वारा दिसंबर 1600 को ‘ द गवर्नर एंड कंपनी मर्चेंट ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज’ की स्थापना हुई। बाद में इसी का नाम बदलकर ‘ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’ हुआ। हालांकि कंपनी की स्थापना 1600 ई ० में हुई, लेकिन भारत के अभियान1607 ई० में ही भेजा गया जिसका नेतृत्व कैप्टन हॉकिंस ने किया। वह जहांगीर से जेम्स प्रथम के दूत के रूप में मिला, लेकिन सूरत में फैक्ट्री स्थापना की अनुमति प्राप्त नहीं कर सका। सन 1611 में कैप्टन मिडलटन ने सूरत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त कर ली। बाद में अंग्रेजों ने सूरत से स्थाई फैक्ट्री स्थापित कर ली। इसके पश्चात अहमदाबाद, बुरहानपुर, अजमेर, और आगरा में भी ब्रिटिश फैक्ट्रियां स्थापित हो गई। 1618 ई० सर थामस रो व्यापार करो में छूट हासिल कर ली। सूरत से मुख्यतः सूती कपड़े और नील का व्यापार किया जाता था। 1620 ई० में पुर्तगालियों पर विजय प्राप्त करने से अंग्रेजों का प्रभुत्व बढ़ गया। 1622 ई ० में अंग्रेजों ने पुर्तगालियों से हार्मुज जीत लिया। 1630 ई ० में अंग्रेजों ने स्वंय को मुसलीपट्टनम में स्थापित किया और 1639 ई ० में मद्रास की स्थापना की।
अंग्रेजों ने 1632 ई ० में गोलकुंडा के सुल्तान से स्वर्णिम फरमान प्राप्त कर मुसलीपट्टनम में अपने व्यापार को सुरक्षित किया। 1641 ई ० में अंग्रेजों ने अपना मुख्यालय मुसलीपट्टनम से हटाकर मद्रास के फोर्ट सेंट जार्ज में स्थांतरित कर दिया। 1661 ई ० में अंग्रेजों को पुर्तगालियों से मुंबई दहेज के रूप मे प्राप्त हो गया। बंगाल के मुगल सूबेदार के निमंत्रण पर अंग्रेज बंगाल गए और 1690 के दशक में कोलकाता में एक किले बंद नगर की स्थापना की। 1697 में कोलकाता में फोर्ट विलियम की नीव पड़ी।
1715 ई ० जॉन सूरमा मुगल बादशाह फारुखसियार के दरबार में पहुंचा और बंगाल, हैदराबाद, और गुजरात के सुबेदारो के नाम फरमान जारी करवाकर कंपनी के लिए बहुमूल्य विशेषाधिकार प्राप्त कर लिया।
इस प्रकार 18वीं सदी के दूसरे दशक तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक प्रमुख व्यापारिक कंपनी के रूप में उभरकर आई।
फ्रांसीसी:-- कालबर्ट के प्रयासों के फलस्वरुप ही 1664 ई ० में फ्रांसीसी व्यापारिक कंपनी Compagnie des India Oriental की स्थापना हुई और 1667 ई ० में फ्रांसिस कारों के नेतृत्व में एक अभियान दल भारत भेजा गया। कारों में प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री सूरत में स्थापित की। 1669 ई ० में गोलकुंडा के सुल्तान से अनुमति प्राप्त कर फ्रांसीसियों ने मुसलीपट्टनम में दूसरी फैक्ट्री खोली। 1674 ई ० फ्रांसिस मार्टिन ने पांडिचेरी पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। बंगाल में मुगल सूबेदार शाइस्ता खां से प्राप्त भूमि पर चंद्रनगर की स्थापना हुई।
1693- 99 ई ० तक पांडिचेरी पर डचों का आधिपत्य रहा। इस दौरान उन्होंने इसकी किलेबंदी की, लेकिन 1697 की रिजविक की संधि के अनुसार पांडिचेरी उन्हें फ्रांसीसियों को वापस करना पड़ा। 1701 ई ० में पांडेचेरी फ्रांसीसियों का मुख्यालय बना। 18वीं सदी में अनेक कारणों से फ्रांसीसी कंपनी अन्य यूरोपीय कंपनियों से पिछड़ गई और पांडिचेरी एवं गोवा तक ही सिमट कर रह गयी।
सभी यूरोपिय कंपनियां एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह गई केवल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ही अपना अस्तित्व कायम रख पाई और भारत पर शासन करने में सक्षम रही.
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के केंद्र :--
ब्रिटेन :-- कैंबे, सूरत, मुंबई, कारबार, तेलीचेरी, कालीकट, अन्जेंगो, पटना, ढाका, कलकाता, बालासोर, विशाखापट्टनम, नरसापुर, मुसलीपट्टनम, मद्रास, फोर्ट सेंट डेविड आदि।
पुर्तगाल:-- सूरत, दीव, दमन, बेसिन, सालसिट, चौल गोवा, बेंगलुर आदि।
हॉलैंड :-- अहमदाबाद, भड़ौच, सूरत, कन्नूर, पल्लीपुरम, पटना, कासिम बाजार, जगन्नाथ पुरम, मुसलीपट्टनम मद्रास, गोलकुंडा, फुलटा, चिनसुरा, आदि।
फ़्रांस :-- सूरत, चंद्र नगर, बालासोर,मुसलीपट्टनम,पांडिचेरी।
डेनमार्क :-- बालासोर, ट्रान्क्वेबर, कालीकट( 1745), पटना ( 1770), सेरामपुर ( 1750) .
आस्ट्रिया :-- सूरत( 1720)
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